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कवी रविंदर सिंह कि कविता (कहर )

kavi ravinder singh .com
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(कहर )

भाषणो से नेता कहर बरपा रहे थे

गरीब सड़क वालो को सबक सिखला रहे थे

हवा में जहर भर रहे थे जालिम

नये नये और भी विषधर आ रहे थे

हमने तो बोट दिया था छोटे से साप को

राज कुर्सी पे बैठे नाग आ रहे थे

स्टेज के ऊपर माइक हाथ में उनके

जहर जितना था उगलते आ रहे  थे

कहते थे महगाई दूर करेगे लेकिन

गैस डीजल बिजली के दाम बढ़ाते  आ   रहे  थे

ईमानदारी का झंडा हाथ में उनके

देश लुटते हुए जालिम आ   रहे  थे

देखने में सफ़ेद पोश थे पूरे

तिथि भी साजिश कि तरह मानते आ   रहे  थे

हमने सोचा  था  करजा माफ़ करेगे नेता

वे तो ब्याज पे ब्याज   लगते आ   रहे  थे

हालात उसने इस कदर गरमा दिए

पुलिस पियेसी  के हजारो जवान आ  रहे  थे

वो कहे  रहा था आग लगादु    जो हार गया

हम तो किसी और के बोट डाल कर आ  रहे  थे

हमको पता चला कि उसने बूथ लूट लिया

जीत के नतीजे उसके पक्ष  में आ   रहे  थे

जनता का समंदर देख वो घबरा गया

पांच साल बीते नहीं कि सांप फिर चले आ  रहे  थे

कुर्सी कि चाह में नाग फिर फुफकारने   लगे

नए नए वादे लिखे कागज बटते आ   रहे  थे

इस बार फिर माइक था हाथ में उनके

रविंदर जहर था दुगना जिसे उगलते आ  रहे  थे

भाषणो से नेता कहर बरपा रहे थे

गरीब सड़क वालो को सबक सिकला रहे थे

कवी रविंदर सिंह  ऊन शामली

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