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(कहर )
भाषणो से नेता कहर बरपा रहे थे
गरीब सड़क वालो को सबक सिखला रहे थे
हवा में जहर भर रहे थे जालिम
नये नये और भी विषधर आ रहे थे
हमने तो बोट दिया था छोटे से साप को
राज कुर्सी पे बैठे नाग आ रहे थे
स्टेज के ऊपर माइक हाथ में उनके
जहर जितना था उगलते आ रहे थे
कहते थे महगाई दूर करेगे लेकिन
गैस डीजल बिजली के दाम बढ़ाते आ रहे थे
ईमानदारी का झंडा हाथ में उनके
देश लुटते हुए जालिम आ रहे थे
देखने में सफ़ेद पोश थे पूरे
तिथि भी साजिश कि तरह मानते आ रहे थे
हमने सोचा था करजा माफ़ करेगे नेता
वे तो ब्याज पे ब्याज लगते आ रहे थे
हालात उसने इस कदर गरमा दिए
पुलिस पियेसी के हजारो जवान आ रहे थे
वो कहे रहा था आग लगादु जो हार गया
हम तो किसी और के बोट डाल कर आ रहे थे
हमको पता चला कि उसने बूथ लूट लिया
जीत के नतीजे उसके पक्ष में आ रहे थे
जनता का समंदर देख वो घबरा गया
पांच साल बीते नहीं कि सांप फिर चले आ रहे थे
कुर्सी कि चाह में नाग फिर फुफकारने लगे
नए नए वादे लिखे कागज बटते आ रहे थे
इस बार फिर माइक था हाथ में उनके
रविंदर जहर था दुगना जिसे उगलते आ रहे थे
भाषणो से नेता कहर बरपा रहे थे
गरीब सड़क वालो को सबक सिकला रहे थे
कवी रविंदर सिंह ऊन शामली
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