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कवी रविंदर सिंह कि कविता (जमाना)

kavi ravinder singh .com
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(जमाना)

भुर्ण हत्या आम हुयी अब बात समंझ में आवे

दही दूध ने खाते ना है मांस मीट ने खावे

चाल चलन ही बिगड़ गया यो ऐसा जमाना आया

एक जगह पे बेटे ने ही जुलम मात पे ढाया

बेटे ने ही बाप का अपने लोगो घेट दबाया

किसी किसी ने नारी को ही लोगो बेच बगाया

लड्डू पेड़े छोड़ दिए सब पानी पतासे लावे

भुर्ण हत्या आम हुयी अब बात समंझ में आवे

दही दूध ने खाते ना है मांस मीट ने खावे

खून का टोपा नहीं गात में भिचमा कपडे पहर लेवे

चाम कि  पेटी  सही पकड़ के चोगरदे ने सहर देवे

और लड़ाई ना रहरी अब एक दूजे ने जहर देवे

मात पिता को रहने खातिर कमरा बिलकुल बहर देवे

और पता ना नया जमाना कैसा खेल दिखावे

भुर्ण हत्या आम हुयी अब बात समंझ में आवे

दही दूध ने खाते ना है मांस मीट ने खावे

छोटे छोटे गुंडे लोगो गाम गली में पाण लगे

दारु पीके रूधन मचावे घर को शिर पे ठान लगे

रोज रोज फेर होवे लड़ाई चोकी के माँ जान लगे

बीच सड़क पे नलके आगे बिलकुल नंगे नहान लगे

मंदिर मै भी जाके ये तो अपना ऐब दिखावे

भुर्ण हत्या आम हुयी अब बात समंझ में आवे

दही दूध ने खाते ना है मांस मीट ने खावे

गौ माता कि पूजा हो थी अब भालले मरण लागे

दारु पीके महापुरषो के भेष भी धारण लागे

कहे रविंदर नाश होण के कितने कारण लागे

ईश्वर शर्मा नु कहवे था तेरे ठीक उधारण लागे

संस्कृति है जान से पियारी लोक गीत नु गावे

भुर्ण हत्या आम हुयी अब बात समंझ में आवे

दही दूध ने खाते ना है मांस मीट ने खावे

कवी रविंदर सिंह ऊन शामली

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