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हमदर्द बनने की कसम खाई थी वो भी तोड़ आया

kavi ravinder singh .com
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मित्रो हमदर्द बनने चला था मै भी ……

लोगो के दिल जब खोलकर देखे तो गम हजार मिले

आँखो में झांक कर देखा तो आशुओ के बाजार मिले

सभी को उनके हालत और हाल पर छोड़ आया

हमदर्द बनने की कसम खाई थी वो भी तोड़ आया

********************* मित्रो मुझे एक सपना दिखाई दिया उसी की देन ये पांच लाइन है जो ऊपर लिखी है …….. ….सपना इस प्रकार था मै किसी की सहायता के लिए गया ……कही सुनसान जगह पर गया …..वहाँ दो टोकरियाँ रक्खी हुई एक टोकरी दिल और दूसरी में इंशानी आँखे रक्खी हुई थी मैंने सोचा की आज इन दिलो को खोलकर देखुंगा की इनमे क्या क्या छिपा हुआ है ….जब दिल खोल कर देखे तो हर दिल में गम ही गम थे इसके बाद मेने दूसरी टोकरी जिसमे आँखे थी को उघाडा और एक आँख में झांक कर देखा तो आंशुओ के बाजार लगे हुए थे …..तभी मेने टोकरी को बंद कर दिया मेरी आँख खुली तो मै चकित था ..मन पता नहीकिस और चला गया था

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