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सुख की खोज

kavi ravinder singh .com
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DSCN0200एक  दिन  मैं सुख की खोज में निकल गया था

चारो  और गर्मी  ही गर्मी थी मैं पिंघल गया था

कई लोग मुझसे ही सुख का पता बुझने वाले थे

हमने झट  बात को पलटा वार्ना हम फसने वाले थे

हमारे पास तो केवल दुःख का पता हुआ करता था

जो हमें सुबह शाम हर वक्त मिल जाया करता था

मैंने सुख को सेठ साहूकारों और दलालो में भी ढूंढा

गिरजाघर मस्जिद गुरुद्वारा और शिवालों में भी ढूंढा

लेकिन सुख का पता कही नहीं मिलता दिख रहा था

हमारा  कीमती समय और बर्बाद होता दिख रहा था

गगन चुम्बी इमारतों और बड़े प्रतिष्ठानों में भी गया

बड़े – बड़े होटलो पार्को  भव्य मकानों  में भी गया

संसद विधायको और अधिकारियो से भी मिला था

सभी जगह दुःख का डेरा था सुख का फूल कही ना खिला था

सुख तो मुझे ना मिला पर दुःख मुझसे मिलने आया करता था

दुनियादारी की बहुत सारी अच्छि अच्छि बातें बताया करता था

मुझे पता चला की दुःख  तो सुख का बिलकुल खासम खास है

मैंने दुःख से  कहा भाई तू  ही बतादे सुख का कहाँ  वास है

उस दिन दुःख बोला सुख कही बाहार नहीं  तेरे अंदर है भाई

उस दिन उसने और भी कई सारी बात मुझे बार बार समझाई

जैसे ममता में सुख पिता के प्यार में सुख वृक्ष की छाया में भी

परिश्रम में सुख दुसरो की भलाई में सुख कमाई हुई माया में भी

बोला जीवन तो लक्षण भंगुर है कल के लिए आज को बेकार ना कर पुत्र

जो मिले उसी में सबर कर सुख ही सुख मिलेगा अहंकार ना कर पुत्र

मेरा मतलब ये नहीं की मेहनत ना कर, अरे पुत्र मेहनत तो कर

मेहनत ही सफलता की कुंजी है  मेहनत कर,  पर परमात्मा से डर

लेखक रविंदर सिंह शामली

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कृपया कविता को मूल रूप में ही रहने दे आदरणीय मित्र काट पीट ना करे

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