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जब से नोट बंदी हुई है कई विपक्षी दल एक जुट नजर आये मैंने तो टीवी पर देखा है बहन मायावती जी गुस्से में नजर आई युवा यूपी सम्राट श्री अखलेश यादव जी भी अपनी आक्रमक शैली में नजर आये और विकास पुरुष दिल्ली सम्राट श्री अरविद केजरीवाल जी का गुस्सा सबसे ज्यादा झलक रहा था रही बात श्री राहुल गाँधी जी की तो उनके तेवर इतने ज्यादा आक्रमक नहीं थे ये सभी जनता के नेता है हर किसी के साथ में कोई ना कोई वर्ग जुड़ा हुआ है राजनिति एक ऐसी विषय वस्तु होती है जहाँ पर जमे रहने के लिए सत्ता पक्ष के हर काम में मीन मेक निकालनी और बयानबाजी करनी जरुरी होती है तभी सत्ता पक्ष का बोट विपक्षी पार्टिया आकर्षित कर पाती है हर पार्टी की अपनी अपनी गाइड लाइन होती है जिसे पार्टी से जुड़े हर व्यक्ति को फॉलो करना होता है जो फॉलो नहीं करता उसे बहार का रास्ता दिखाना पड़ता है अब नोट बंदी के बाद भीड़ की बात करे तो लाइनों में लगे अस्सी प्रतिशत लोग इस फैसले को सही मानते है जो बैंक में कार्य रत कर्मचारी है वे कहते है की भाईसाब सबसे ज्यादा ऐसी तैसी तो हमारी हो रही है लेकिन हम फिर भी कहते है की फैसला सरकार का सही है अब यदि बोट बैंक की बात करे तो बहन मायावती जी का बहुत सारा बोट भारतीय जनता पार्टी के तरफ जा चूका है माया का कमजोर होना मुलायम सिंह के लिए खतरे की घंटी है बड़े बनिया और छोटे बड़े सुनारो का रुझान राष्ट्रीय लोक दल की तरफ हुआ है यदि मुलायम सिंह जी ने महागठबंधन में अड़ंगा लगाया तो पूर्ण बहुमत में सरकार भारतीय जनता पार्टी की उत्तरप्रदेश में आएगी आज मुलायम सिंह जी शिवपाल की बातो को नहीं मान रहे है शिवपाल जी की कीमत का पता मुलायम सिंह जी को फरवरी के बाद में पता चल जायेगा
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